ज्योतिषशास्त्र की व्युत्पति "ज्योतिषां सूर्या दिग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्" से की गयी है, अर्थात सूर्यादि ग्रह और काल का बोध कराने वाले शास्त्र को ज्योतिषशास्त्र कहा जाता है। इसमे प्रधानतः ग्रह, नक्षत्र, धूमकेतु आदि ज्योतिः पदार्थो का स्वरुप संचार परिभ्रमणकाल ग्रहण और स्थिति प्रभ्रति समस्त घटनाओं का निरुपण एवं ग्रह नक्षत्रों की गति स्थिति और संचारानुसार शुभाशुभ फलों का कथन किया जाता है।
पारंपरिक वैदिक जयोतिष एक व्यक्ति के जन्म के समय ग्रहों की स्थिति उसकी शिक्षा आजीविका परिवार व्यवसाय(हानि या लाभ) उसकी प्रसिद्धि, गौरव, गरिमा और उसकी व्यवहार्यता और उसके कई कारकों को नियंत्रित करती हैं जो एक मनुष्य की स्थिरता के लिए जिम्मेदार है।सदियों से मनुष्य अपने अस्तित्व की सार्थकता के लिए कुछ अदृश्य अलौकिक एवं सर्वव्यापी बल में विश्वास करता रहा है।
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