ज्योतिषशास्त्र की व्युत्पति "ज्योतिषां सूर्या दिग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्" से की गयी है, अर्थात सूर्यादि ग्रह और काल का बोध कराने वाले शास्त्र को ज्योतिषशास्त्र कहा जाता है। इसमे प्रधानतः ग्रह, नक्षत्र, धूमकेतु आदि ज्योतिः पदार्थो का स्वरुप संचार परिभ्रमणकाल ग्रहण और स्थिति प्रभ्रति समस्त घटनाओं का निरुपण एवं ग्रह नक्षत्रों की गति स्थिति और संचारानुसार शुभाशुभ फलों का कथन किया जाता है।
पारंपरिक वैदिक जयोतिष एक व्यक्ति के जन्म के समय ग्रहों की स्थिति उसकी शिक्षा आजीविका परिवार व्यवसाय(हानि या लाभ) उसकी प्रसिद्धि, गौरव, गरिमा और उसकी व्यवहार्यता और उसके कई कारकों को नियंत्रित करती हैं जो एक मनुष्य की स्थिरता के लिए जिम्मेदार है।सदियों से मनुष्य अपने अस्तित्व की सार्थकता के लिए कुछ अदृश्य अलौकिक एवं सर्वव्यापी बल में विश्वास करता रहा है। इस बल ने ना केवल सिर्फ मनुष्य को अपना जीवन सुगम बनाने में सहायता की है बल्कि जीवन में श्रम के महत्व को सभी कार्यों में सर्वोपरि समझने में भी एक विशेष योगदान दिया है।ज्योतिष शास्त्र ने सदा से ही अदृश्य बल के रूप में कार्यरत रहते हुए मानव जाति का मार्गदर्शन किया है। ज्योतिष में हर ग्रह के प्रभाव को मंत्र, रत्नों, दान द्वारा ही नियंत्रित किया गया है।
यदि हम ऋषि-मुनियों द्वारा लिखे गए शास्त्रों का अध्ययन करें तो हमें यह जानकारी अवश्य प्राप्त होगी कि संसार की संरचना में मूलभूत योगदान ज्योतिष का भी है। मनुष्य का जीवन और मृत्यु भी एक ज्योतिष गणना के अंग हैं, जिनका निर्धारण स्वयं ईश्वर के अधीन है परंतु मनुष्य जीवन को कैसे जातक बनाया जा सकता है इसकी गणना मनुष्य ज्योतिष की सहायता से प्राप्त कर सकता है, इसी कारण वश ज्योतिष विद्या इस संसार में अपना एक विशेष पद रखती है। इस शास्त्र की सबसे बड़ी उपयोगिता यही है कि यह समस्त मानव जीवन के प्रत्येक और प्रयोग सदस्यों का विवेचन करता है और प्रतीकों द्वारा समस्त जीवन को प्रत्यक्ष रुप मे उस प्रकार प्रकट करता है, जिस प्रकार दिपक अंधकार मे रखी वस्तु दिखलाता है।